ये तूने क्या किया है !











है हसरतों की ये ख्वाइश, या खुदा की है नुमाइश 
जो आजकल गुलज़ार वीरान हुआ है 
जो होता है वो अच्छे के लिए होता है अगर 
तो क्यूँ मैं मानना ना चाहूँ, कि जो हुआ है वो भला हुआ है !

कभी सोचता हूँ, और चौंक जाता हूँ ,
की ये जो हुआ, वो आखिर क्या हुआ है ?
बदलनी ही थी किस्मत को राह अगर,
तो वो क्यों चुनी जिसमे तू शामिल ना हुआ है ?

रात दिन, दिन रात, एक ही सवाल खाए है मुझे,
कि किस खता से तू रुसवा हुआ है ?
तुझे बचाने की जरुरत मेरी इतनी बदगुमान थी अगर,
तो क्यूँ इस रंजिश में मेरा ही दिल क़ुर्बान हुआ है ?

क्या करूँ, कैसे कहूँ, कि तेरी नादानी का ये कैसा वाक़िआ है,
कि जब खुलेंगे आँखें तेरी, तो तुझे लगेगा आइना भी दुश्वार हुआ है,
और मिला सके उस वक़्त तू खुद के नजर अगर,
तो याद करके इस पल को सोचना, कि तूने ये क्या किया है !

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