जब नाम तेरा प्यार से लिखती हैं उंगलिया

जब नाम तेरा प्यार से लिखती हैं उँगलियाँ 
मेरी तरफ ज़माने की उठती हैं उंगलियाँ 

दामन सनम का हाथ में आया था एक पल 
दिन-रात उस एक पल से महकती हैं उँगलियाँ 

जिस दिन से दूर हो गये उस दिन से ही सनम 
बस दिन तुम्हारे आने के गिनती हैं उँगलियाँ 

पत्थर तराश कर ना बना ताज एक नया 
फनकार की जामानें में कटती हैं उंगलिया 

मेरा पत्थरों सा गुरुर था

मेरी रूह जैसे कुचल गया 
कोई शख्स ऐसे बदल गया 

ये किसका हर्फ़-ए-दुआ रहा 
के मैं गिरते-गिरते संभल गया 

तेरी याद जब आने लगी 
मेरा दर्द जैसे बहल गया 

मेरी किस्मतों का काफ़िला 
किसी और जानिब निकल गया 

तुम्हे देखते हैं बेहिसाब 
कोई ख्वाब मेरा मचल गया 

मेरा पत्थरों सा गुरुर था 
मगर तेरे आगे पिघल गया 

इश्क है नाम खुद अपने से गुजर जाने का

कोई समझाए कि क्या रंग है मयखाने का 
आँख शाकी के उठे, नाम हो पैमाने का 

गरमी-ए-शाम का अफसाना सुनने वालों 
रक्स देखा नही तुमने अभी परवाने का 

चस्म-ए-शाकी मुझे हर गम पे याद आती है 
रास्ता भूल न जाऊं कहीं मयखाने का 

अब तो हर शाम गुजती है इसी कुचे में 
ये नतीजा हुआ नसीह तेरे समझाने का 

अब तो मंजिल से गुजन्रा तो आसान है "इकबाल"
इश्क है नाम खुद अपने से गुजर जाने का 

- इकबाल सफी पुरी