मैं सजदे में नही था, आपको धोखा हुआ होगा...

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा 
मैं सजदे में नही था, आपको धोखा हुआ होगा 

यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ 
मुझे मालूम है पानी कहा ठहरा हुआ होगा

गजब ये हैं कि अपनी मौत की आहट नही सुनते 
वो सब के सब परेशान हैं वहां पर क्या हुआ होगा 

तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुन कर तो लगता है 
कि इंसानों के जंगल में कोई हांका हुआ होगा 

कई फाके बिताकर मार गया, जो उसके बारे में 
वो सब कहते हैं अब, ऐसा नही , ऐसा हुआ होगा 

यहाँ तो सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं 
खुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा

चलो, अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें 
कम-अज-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा 

- दुष्यंत कुमार 




यहाँ हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है

यहाँ हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है 
खिलौना है जो मिट्टी का फ़ना होने से डरता है 

मेरे दिल के किसी कोने में एक मासूम सा बच्चा 
बड़ो की देखकर दुनिया, बड़ा होने से डरता है

ना बस में ज़िन्दगी इसके ना काबू मौत पर इसका 
मगर इंसान फिर भी कब खुदा होने से डरता है 

अजब ये जिंदगी की कैद है, दुनिया का हर इंसान 
रिहाई मांगता है और रिहा होने से डरता है 



आशार मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं

अशार मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं 
कुछ शेर फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं 

अब ये भी नही ठीक के हर दर्द मिटा दें 
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं 

आँखों में जो भर लोगे तो कांटो से चुभेंगे 
ये ख्वाब तो पलकों पर सजाने के लिए हैं 

देखूं तेरे हाथों को तो लगता है तेरे हाँथ 
मंदिर में फ़क़त दीप जलाने के लिए हैं 

सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की 
वरना तो बदन आग बुझाने के लिए है

ये इल्म का सौदा, ये रिसाले ये कीताबें 
इक शख्स की यादों को भुलाने के लिए है

- जान निशार अख्तर 


धीरे-धीरे



बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे 
खुले मेरे ख्वाबों के पर धीरे-धीरे 

किसी को गिराया न खुद को उछाला 
काटा जिंदगी के सफ़र धीरे-धीरे 

जहाँ आप पहुचेंगे छलांगे लगा कर 
वहां मै भी पहुंचा मगर धीरे-धीरे 

पहाड़ों की कोई चुनौती नही थी 
उठाता गया कोई सर धीरे-धीरे 

गिरा मैं कही तो अकेले में रोया 
गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे
            
                  रामदरश मिश्र जी की कलम से ।

मेरी दीवानगी अपना ठिकाना धूंढ लेती है

मेरी खामोशियों में भी फ़साना ढूंढ़ लेती है
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ़ लेती है 

हकीकत जिद किये बैठी हैं चकनाचूर करने को 
मगर हर आँख फिर सपना सुहाना ढूंढ़ लेती हैं

उठाती हैं जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का 
वही कोशिश समुंदर में खजाना ढूंढ़ लेती है 

ना चिड़िया की काम न कारोबार है कोई 
वो केवल हौशले से आबो-दाना ढूंढ़ लेती है 

जूनून मंजिल का राहों में बचाता है भटकने से 
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ़ लेती है