या दोस्त कोई मिल गया हमसे भी प्यारा ?

सूरज डूब गया, और उभर आया ध्रुव तारा 
पर आज भी नही आया पैगाम तुम्हारा 
रूठी है हमारी किस्मत, जो भूल गये नाम हमारा 
या दोस्त कोई मिल गया, हमसे भी प्यारा ?

आज दिल ने फिर किया आँखों का इशारा 
सिसक ने याद दिलाया कि गम है सहारा 
कटते नही दिन कैसे हो रातों का गुजारा ?
काश सुन पाते तुम जब दिल ने था तुम्हे पुकारा 

तन्हाई ने दिखाया था जिंदगी जीने का नज़ारा 
काट ही लेते वैसे, हम अपना ये जीवन सारा 
पर आ गये तुम जैसे किसीने डूबते को उभारा 
फिर कहाँ चल दिए, छोड़के के साथ हमारा ?

अब आस लगायें बैठें, या तोड़ दें वादों के पुल 
चलें आगे सीना ताने या बैठें संभाले हाल-ए-दिल 
कभी सोचते हैं , 'अब कहाँ आ गये हैं'
शायद गर्दिश में कहीं, छुट गयी महफ़िल 

हिचकियाँ रो आती होंगी, जब याद करता है दिल बेचारा 
तो बस एक बार मुड़ के मुस्कुरा दो दोबारा 
जीने की वजह मिल जाए और सुधर जाये दिल आवारा 
वरना समझेंगे सच में दिल मिल गया, दोस्त कोई हमसे भी प्यारा !

यादें !


मौसम में आज बरसने का मन है 
ठंडी हवा के साथ बूंदों का आगमन है 
ऐसे में क्यूँ मेरा दिल भर आया है 
याद आयी तेरी या तन्हाई ने बुलाया है 

मिट्टी की खुश्बू ने सबको मदहोश कर दिया 
बच्चों ने रास्ते पर ख़ुशी का ऐलान कर लिया 
पर क्यूँ फिर मौसम ने मेरी आँखों को नम कर दिया 
शायद टूटा है कोई सपना जिसने मन को झकझोर दिया 

ऐसे बारिश में भी क्यों है प्यास अधूरी 
क्यों नही होती कभी दिल की कमी पूरी 
कभी खिड़की पर तो कभी बिस्तर पर बैठते हैं हम 
और याद करते हैं वो पहली मुलाकात हमारी 

वो एक छाते में हमारा संभल के चलना 
वो बाहों में प्यार से लड़ना झगड़ना 
और चलते हुए बस तुम्हारी बातें सुनना 
और वो शरमाती हुई मुस्कान पे दिल का मचलना  

ना आएगा वो पल लौट कर दोबारा 
ना आएगी वो रात कभी मुड़ के दोबारा 
शुरू हो गयी है बरसात अब आसमान से 
और सुखा नही है अब मेरी आँखों का किनारा 

हाल-ए-दिल !


टूटे हुए दिल का साज़ सुनाऊ तो कैसे 
ज़ख्मों पर अपने मलहम लगाऊं तो कैसे 
गुमराह रास्तों पर चलने की चाह तो बहुत है 
पर मंजिल की तरफ पहला कदम बढाऊं तो कैसे ?

रोम-रोम से उठी ये कराह सुनाऊ तो किसको 
दिल चीख उठा मेरा पर जताऊ तो किसको 
जी नही सकता और मर नही पाता
पर हाल-ए-दिल ये अपना बताऊ तो किसको ?

यूँ तो हर मोड़ पर मिल जाते हैं नये दोस्त मुझे 
हर पल भीड़ में घेरे रखते हैं वो मुझे 
क्यूँ फिर हर वक़्त अकेले रखते हैं वो मुझे 
क्यूँ फिर हर पल अकेला पड़ जाता हूँ मैं 
शायद खुद में ही मक़सूद हैं जो भूल जाते हैं मुझे 

दवा बे-असर, दुआ भी बेकार बन गयी 
रुसवा हुई यूँ जिंदगी की जैसे कहर बन गयी 
हाथ की लकीरों में धुंधला गयी यूँ किस्मत 
कसम खुदा की साँसे ज़हर बन गयी !

याद करते हैं वो पहली मुलाकात हमारी !


मौसम को आज बरसने का मन है 
ठंडी हवा के साथ बूंदों का आगमन है 
ऐसे में क्यूँ मेरा दिल भर आया है 
याद आई तेरी या तन्हाई ने बुलाया है 

मिट्टी की खुश्बू ने सबको मदहोश कर दिया 
बच्चों ने रास्ते पर ख़ुशी का ऐलान कर लिया 
पर फिर क्यों मौसम ने मेरी आँखों को नम कर दिया 
शायद टूटा है कोई सपना जिसने मन को झंकझोर दिया 

ऐसे बारिश में भी क्यूँ है ये प्यास अधूरी 
क्यूँ नही होती कभी दिल की कमी पूरी 
कभी खिड़की तो कभी बिस्तर पर बैठते हैं हम 
और याद करते हैं वो पहली मुलाकात हमारी 

वो वक छाते में हमारा सम्भल के चलना 
वो बाहों का प्यार से लड़ना झगड़ना 
और चलते हुए बस तुम्हारी बातें सुनना 
और वो शरमाती मुस्कान पे दिल का मचलना 

ना आएगा वो पल लौट कर दोबारा 
ना आएगी वो रात कभी मुड़ के दोबारा 
शुरू हो गयी है बरसात अब आसमान से 
और सुखा नही है अब मेरी आँखों का किनारा 

ये सच लाज़मी है कौन अपनाएगा ?


मेरी राहों में कभी कोई फुल नही आएगा 
मेरे बिस्तर पे ज़माना सदा काँटे ही सजाएगा 
गम ये नही कि इस ज़िन्दगी पे उसे हसी आती है 
गीला ये है कि मेरे मरने पे उसे रोना न आएगा 

जैसे बीती है कल तक ज़िन्दगी 
आने वाला कल भी वैसे ही कट जाएगा 
जो सबसे अजीज़ है, वो अब नही मेरे पास 
ये मुझे कोई कैसे समझाएगा  ?

जिसके संग बितानी थी सारी ज़िन्दगी 
उसकी कमी भला कौन पूरी कर पाएगा ?
और कोई आ भी गया इस मन को बहलाने 
इस दिल को लेकिन कौन बहलाएगा ?

जाने दें उन्हें ये फ़रमाइश है दुनिया की 
पर मेरी हालातों के मंज़र को कौन देख पाएगा ?
थोड़ी सी ख़ुशी का भी हक नही अब मुझे 
ये सच लाज़मी है कौन अपनाएगा ?

बेदर्दी ये ज़माना है


मेरे हर लफ्ज़ में दर्द का फ़साना है 
मेरे हर रोम में गम का एक तराना है 
वो इसलिए नही क्योकि ये दिल आशिकाना है 
पर इस लिए क्युकी बेदर्दी ये ज़माना है 

सब कहते हैं कि भूल जाओ जख्म अब पुराना है 
उठो ऐसे की समझो सितारों को पाना है 
ज़ालिम बड़ा काम ये दिल को समझाना है 
कब माना था ये , जो अब इसने माना है 

आप कहते हैं कि चार पंक्तियाँ सुनाइए 
अपने नगमों से महफ़िल की शोभा बढाइये 
पर गम कहाँ किसी महफ़िल का खज़ाना है 
जैसे लाज़मी शमा-ए-महफ़िल में जलता परवाना है 
वैसे ही जनाब , बड़ा बेदर्दी ये जमाना है 

अज़ब ढूंढता हू !


लिखने का अफ़साना अजब ढूंढ़ता हू 
गुनगुनाने का तराना अज़ब ढूंढ़ता हू 
देकर खुद को कोई झूठी तसल्ली 
मुस्कुराने का बहाना अज़ब ढूंढता हू 

भुलाने का फ़साना अज़ब ढूंढता हू 
यादों का नज़राना अज़ब ढूंढता हू 
अन्त का वो सिरा जहाँ छूटा था सबकुछ 
एक वो ठिकाना अज़ब ढूंढता हू 

खोया वो परवाना अज़ब ढूंढता हू 
मन वो दीवाना अज़ब ढूंढता हू 
एहसास -ए-रूह को बहला पाऊं मैं 
ऐसा वो जमाना अज़ब ढूंढता हू 

गुमान !

मेरे लफ़्ज़ों से न कर मेरे किरदार का फैसला 
तेरा वजूद मिट जाएगा मेरी हकीकत ढूंढ़ते - ढूंढ़ते 
और अगर है कोई गुंजाइस तो आजमा के देख ले 
पर तेरा दामन ना भीग जाएगा मेरी तबीयत देखते देखते !

मेरी मुस्कान से न कर मेरे दर्द का फैसला 
बड़ी मुश्किल से ला पाता हु मैं अपने आंसू रोकते रोकते 
और अगर है हौसला तो मिलाके देखले नज़र 
पर तेरी नज़र न झुक जाये मेरी असलियत देखते - देखते !

मेरी हरकतों से ना कर मेरे जज़बातों का फैसला 
तेरा ईमान डगमगा जाएगा मेरे ऊसूल सुनते सुनते 
है सीने में मेरे अगन ऐसी की उसकी सुलग में 
गुजर गये कितने अपने अरमान सेंकते - सेंकते !

दूर कुछ भी नही


दूर कुछ भी नही और समय भी पर्याप्त है 
बस तुम्हारा आत्मबल चलने की प्रेरणा दे दे 
कार्य कितने भी हो और मुश्किले हरपल मिले 
बाजुओं में दम हो, मन करने की आज्ञा दे दे 

                                    राह में कितनी भी विपरीत हवाएं आयें 
                                    और लहरों के वेग बार-बार टकराये 
                                    नाव साहिल पे पहुच जाएगी रफ़ता-रफ़ता 
                                   बुद्धि पतवार पकड़ने की चेतना दे दे 

आँधियों में नन्हे चिराग से पूछो 
मध्य काटों के सुगन्धित गुलाब से पूछो 
जिंदगी सिर्फ सुहानी सुबह का नाम नही 
धुप में जलते हुए अफताब से पूछो 

                                  कुछ असंभव नही है उम्र भी पर्याप्त है 
                                 बस नेक दिल करने की आज्ञा दे दे !

जिंदगी से समझौता कर लिया हमने...


जिंदगी से समझौता कर लिया हमने 
आप हमारे लिए ना थे, यही सोचकर 
सारे गम भी सह लिए हमने 
किसी से शिकायत क्या करते 
जब छोड़ा साथ अपनों ने ही हमारा 
हम डूबे ऐसे भवर में 
जिससे निकला ना कोई किनारा 
आप किसी और के हो जाएँगे 
ये शायद हमें पहले ही पता होता 
हम यकीं न करते इस दिल पे कि 
ये अपना होकर ही दगा देगा 
ना दिल चाहता आपको 
ना दिल में कोई हसरत होती 
हम खोये रहते अपने ही ख्यालों में 
किसी और की चाहत ही न होती 
हम तनहा हुए ऐसे कि 
परछाई भी साथ नही 
किसी से कुछ भी कहते अब 
दिल में ऐसी कोई बात नही.