मेरी राहों में कभी कोई फुल नही आएगा
मेरे बिस्तर पे ज़माना सदा काँटे ही सजाएगा
गम ये नही कि इस ज़िन्दगी पे उसे हसी आती है
गीला ये है कि मेरे मरने पे उसे रोना न आएगा
जैसे बीती है कल तक ज़िन्दगी
आने वाला कल भी वैसे ही कट जाएगा
जो सबसे अजीज़ है, वो अब नही मेरे पास
ये मुझे कोई कैसे समझाएगा ?
जिसके संग बितानी थी सारी ज़िन्दगी
उसकी कमी भला कौन पूरी कर पाएगा ?
और कोई आ भी गया इस मन को बहलाने
इस दिल को लेकिन कौन बहलाएगा ?
जाने दें उन्हें ये फ़रमाइश है दुनिया की
पर मेरी हालातों के मंज़र को कौन देख पाएगा ?
थोड़ी सी ख़ुशी का भी हक नही अब मुझे
ये सच लाज़मी है कौन अपनाएगा ?
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