बेदर्दी ये ज़माना है


मेरे हर लफ्ज़ में दर्द का फ़साना है 
मेरे हर रोम में गम का एक तराना है 
वो इसलिए नही क्योकि ये दिल आशिकाना है 
पर इस लिए क्युकी बेदर्दी ये ज़माना है 

सब कहते हैं कि भूल जाओ जख्म अब पुराना है 
उठो ऐसे की समझो सितारों को पाना है 
ज़ालिम बड़ा काम ये दिल को समझाना है 
कब माना था ये , जो अब इसने माना है 

आप कहते हैं कि चार पंक्तियाँ सुनाइए 
अपने नगमों से महफ़िल की शोभा बढाइये 
पर गम कहाँ किसी महफ़िल का खज़ाना है 
जैसे लाज़मी शमा-ए-महफ़िल में जलता परवाना है 
वैसे ही जनाब , बड़ा बेदर्दी ये जमाना है 

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