शाम से आँख में नमी सी है !















शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है
दफ्न कर दो हमे कि साँस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है
वक़्त रहता नही कहीं छुपकर
इस की आदत भी आदमी सी है
कोई रिश्ता नही रहा फिर भी
एक तस्लीम लाज़मी सी है 
Poet of the Poem / Ghazal or Nazam : Gulzar

सोचते और जागते साँसों का इक दरिया हूँ मैं














सोचते और जागते साँसों का इक दरिया हूँ मैं
अपने गुमगश्ता किनारों के लिए बहता हूँ मैं
जल गया सारा बदन इन मौसमों के आग में
एक मौसम रूह का है जिसमे अब जिन्दा हूँ मैं
मेरे होठों का तबस्सुम दे गया धोखा तुझे
तूने मुझको बाग जाना, देख ले सेहरा हूँ मैं
देखिये मेरी पज़ीराई को अब आता है कौन
लम्हा भर को वक़्त के दहलीज़ पर आया हूँ मैं 
Poet of the Poem / Ghazal or Nazam : Athar Nafees