कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नही मरा करता है

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों 
मोती व्यर्थ लुटाने वालों 
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नही मरा करता है 

सपना क्या है, नयन सेज पर 
सोया हुआ आँख का पानी 
और टूटना है उसका ज्यों 
जागे कच्ची नींद जवानी 
गीली उमर बनाने वालो, डूबे बिना नहाने वालों 
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नही मरा करता है 

माला बिखर गयी तो क्या है 
खुद ही हल हो गयी समस्या 
आंसू गर नीलाम हुए तो 
समझो पूरी हुई तपस्या 
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों 
कुछ दीपों के मर जाने से, आँगन नही मरा करता है 

खोता कुछ भी नही यहाँ पर 
केवल जिल्द बदलती पोथी 
जैसे रात उतार चांदनी 
पहने सुबह धूप की धोती 
वस्त्र बदल कर आने वालों, चाल बदल कर जाने वालों 
चंद खिलौनों के खोने से, बचपन नही मरा करता है 
                    - गोपाल दास 'नीरज'