सवेरे जब आजानों की सदायें आने लगती हैं
हमारे घर में जन्नत की हवाएँ आने लगती हैं
बुजुर्गों की इनायत का सहारा मिल गया मुझको
जिधर से भी गुजरती हूँ दुआएँ आने लगती हैं
जहाँ क़ुरान नही दिल में रसाले रखे जाते हैं
ज़माने भर की उस घर में बालाएं आने लगती हैं
मैं लड़की हूँ हया वाली अचानक चौंक पड़ती हूँ
किसी की आहटें जब दायें बाएं आने लगती हैं
- साभार दीपाली मेहता
0 comments:
Post a Comment
आपके comment के लिए धन्यवाद !
हम आशा करते हैं आप हमारे साथ बने रहेंगे !