फूल सी कोमलता रास न आयी तुझे 
और कांटो से कहा कि चुभना छोड़ दे
मेरा हँसना तो तुझे गवारा ना हुआ 
और कहती हो मुझसे कि रोना छोड़ दे !

ऐसी क्या खता हुई मुझसे 
कि तू अपने किये सारे वादे तोड़ दिए 
उन औरों पर इतना भरोसा कैसे 
जो अपनों से तेरा रिश्तों की गाठ खोल दे ! 

बददुआ भी दूँ तो कैसे 
एक ज़माने में तुझे पलकों पे बिठाया था 
हर उछलते दाग के सामने डाली थी चिलमन मैंने 
और अब कहती हो मुझे अकेला छोड़ दे !

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