इशरत शबाना तो यार की रज़ा से है
ये ख़ुशी नहीं मिलती सिर्फ शाम ढलने से
ये ख़ुशी नहीं मिलती सिर्फ शाम ढलने से
आरजू की चिंगारी कब तक सुलग सकती
बुझ गया है दिल आखिर बार-बार जलने से
बुझ गया है दिल आखिर बार-बार जलने से
ज़िन्दगी का हर मोहरा बेरुखी के रुख पर है
ये बिसात क्या उलटेगी एक चाल चलने से
ये बिसात क्या उलटेगी एक चाल चलने से
डूबता हुआ सूरज क्या मुझे उजाले देगा
मैं चमक उठू शायद चाँद के निकलने से
मैं चमक उठू शायद चाँद के निकलने से
0 comments:
Post a Comment
आपके comment के लिए धन्यवाद !
हम आशा करते हैं आप हमारे साथ बने रहेंगे !