क्या बात है जिसका गम बहुत है ?


क्या बात है जिसका गम बहुत है ?
कुछ दिन से ये आँख बहुत नम है 
मिल लेता हूँ गुफ्तगू की हद तक
इतना ही तेरा करम बहुत है 

घर आप ही जगमगा उठेगा
दहलीज़ पे एक कदम बहुत है

मिल जाये अगर रफ़ाक़त
मुझको तो यही जनम बहुत है

क्या शाम से हमें सवाल करना ?
होना तेरा सुबह शाम बहुत है

क्यूँ बुझने लगे चिराग मेरे ?
अब के तो हवा भी बहुत कम है

चुप क्यों तुझे लगी है परवीन ?
सुनते थे तुझमे रम बहुत है 

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