चाहत की राह में बिखरे अरमान बहुत हैं 
हम उसकी याद से परेशान बहुत हैं 
वो हर बार दिल तोड़ता है ये कहकर दिल तोड़ देता है 
कि मेरी उम्मीदों की दुनिया में अभी मुकाम बहुत हैं 

पागल हुए जो हम तो उल्फत उसे भी थी 
चाहा जो हम ने उस को तो चाहत उसे भी थी 
उसको ना भूल पाएँगे वो जानता था 
और हर बात भूल जाने की आदत उसे भी थी 




सभी को सबकुछ नही मिलता, 
नदी के हर लहर को साहिल नही मिलता, 
ये दिलवालों की दुनिया है अजीब, 
किसी से दिल नही मिलता तो कोई दिल से नही मिलता !!





आये है बेकसी-ए-इश्क पे रोना ग़ालिब,
किस के घर जाएगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद !!




दिल किसी और ना हो पाया...
आरज़ू मेरी आज भी तुम हो...
हम इश्क के उस मुकाम पर खड़े हैं,
जहाँ दिल किसी और को चाहे तो गुनाह लगता है !!
ये जो नज़रों से तुम मेरे दिल को निढाल करते हो,
करते तो ज़ुल्म हो साहिब ! मगर कमाल करते हो !!
तुझको देखा फिर उसको ना देखा 
चाँद कहता ही रहा मैं चाँद हूँ, मैं चाँद हूँ...
हैरान हूँ तुम को मस्जिद में देख के ग़ालिब 
ऐसा भी क्या हुआ के खुदा याद आ गया !!

और क्या वजह चाहिए मुझको जश्न मनाने की !!

















आब है शराब है और उम्मीद उसके आने की 
क्या और वजह चाहिए मुझको  जश्न मनाने की 

हर घड़ी वो मेरा इम्तहान लेता है 

आज बारी है मेरी  उनको आज़माने की 

ना बहाओ अश्कों को को कि ये कम पड़ जाएंगे 

ये तो बस शुरुआत है मेरे ग़म के फ़साने की  

यही की थी मोहब्बत के सबक की इब्तदा मैंने !!














यही की थी मोहब्बत के सबक़ की इब्तदा मैंने,
यही की जुर्रत-ए-इज़हार-ए-हर्फ़-ए-मुद्दा मैंने,
यहीं देखे थे इश्क-ए-नाज़-ओ-अंदाज़-ए-हया मैंने,
यहीं पहले सुनी थी दिल धड़कने की सदा मैंने,
यहीं खेतों में पानी के किनारे याद है अब भी.

दिलों में इज्दहम-ए-आरज़ू लब बंद रहते थे,
नज़र से गुफ्तगू होती थी, दम उल्फ़त के भरते थे,
ना माथे पर सिकन होती , ना जब तेवर बदलते थे,
खुदा भी मुस्कुरा देता था जब हम प्यार करते थे,
यही खेतो में पानी के किनारे याद है अब भी.

वो क्या आता के गया दौर में जाम-ए-शराब आता,
वो क्या आता रंगीली रागिनी रंगीन रबाब आता,
मुझे रंगीनियों में रंगने वो रंगीन सहाब आता, 
लबों के मय पिलाने झूमता मस्त-ए-शबाब आता, 
यहीं खेतों में पानी के किनारों याद है अब भी. 

हया के बोझ से जब हर क़दम पर लगाज़िशें होतीं, 
फजां में मुन्तसर रंगीन बदन के लाराज़िशें होतीं, 
रबाब-ए-दिल के तारों में मुसलसिल जुम्बिशें होतीं, 
खिफा-ए-राज़ के पुर्लुफ्त बहम कोशिशें होती, 
यही खेतों में पानी के किनारे याद है अब भी, 

बाला-ए-फ़िक्र-ए-फर्दा हम से कोसों दूर होती थी, 
सुरूर-ए-सरमदी से जिंदगी मामूर होती थी, 
हमारी खिलवत-ए-मासूम रश्क-ए-तुर होती थी, 
मलक झुला झूलते थे ग़ज़ल-ख्वान हुर होती थी, 
यहीं खेतों में पानी के किनारे याद है अब भी. 

ना वो खेत बदली हैं न वो आब-ए-रवां बागी, 
मगर उस ऐश-ए-रफ्ता का है इक धुंधला निशान बागी. 
Poet of the Poem/Ghazal or Nazam: Makhdoom Mohiuddin

ये कैसी मज़बूरी है...!!















आंसू हो कर भी हँसाने की ये कैसी मज़बूरी है 
अपने मुख को धक् लेने की ये कैसी मज़बूरी है 
कल तक ये अंशुमन था मेरा की जीवन मुश्किल है पर 
मर कर भी जीते रहने की या कैसी मज़बूरी है 
महफ़िल में भी एक तन्हाई, ये कैसी मज़बूरी है 
हर एहसास में रुसवाई, ये कैसी मज़बूरी है 
भोर हुए मैंने खुद से जुझू, और संध्या को ये सोचूं 
दिल में तू है अब भी समाई, ये कैसी मज़बूरी है 
शमा तले एक घना अँधेरा, ये कैसी मज़बूरी है 
खोजे मन एक नया सवेरा, ये कैसी मज़बूरी है 
कैसा है ये दाव लगाया दिल ने अब इस बाज़ी में 
मात भी मेरी, हार भी मेरी, ये कैसी मज़बूरी है 

जाने ये जिन्दगी ले जाएगी कहाँ....!!!


















ले जाएगी ये राह कहाँ वो मंजिलें अपनी 
अनजाने, अनदेखे रास्तों से गुज़र रही है ज़िन्दगी 

ये कशमकश का सिलसिला ये उम्मीदों के जलते दिए 
अंधेरों को हटा कर रौशनी की दे सहर ऐ ज़िन्दगी 

मुस्कुराहटों के दरमियाँ क्यूँ भीगी सी है ज़िन्दगी 
सूनी आँखों के अश्कों को जुगनूँ बना दे ज़िन्दगी 

नींद से खाली रातें, बोझिल से हैं दिन 
सुकून के चार पल हमको अता कर दे ऐ ज़िन्दगी

कभी इंसान सही या गलत नही होता.....














कभी इंसान सही या गलत नही होता,
एक नज़रिया उसे सही या गलत बनाता है,
कोई देखता है कीचड़ में कमल का फूल,
तो किसी को चाँद में भी दाग नज़र आता है !!

किसी की बेवफाई का ग़म क्या करना,
वक़्त तो अक्सर बड़े-बड़े को झुकता है,
बदल जाए ना क्यूँ इंसान की फ़ितरत,
साल भर में चार बार मौसम भी बदल जाता है !!

कभी इनकार का सच कडवा लगता है,
और कभी झूठी हमदर्दी भी प्यारी लगती है,
पर क्यूँ इसपर भी नाराज़ होना,
ये तो अपने मन की मजबूरी होती है !!

रंग, रूप और दौलत का खेल भी अजीब होता है,
खुशियाँ खरीद नही सकता, ग़म बेच नही पाता है,
पर फिर भी कैसी आज़माइश है दुनिया की,
जो समझ गया वो अकेला, जो नहीं वो महफ़िल में होता है !!

सुन लो मेरी बात कहीं से आ जाओ.....












तन्हा है मेरी जात कहीं से आ जाओ 
सुन लो मेरी बात कहीं से आ जाओ 
दुश्मन बाज़ी जीत रहा है चुपके से 
होने को है मात कहीं से आ जाओ 
कच्ची इटें और इमारत गेरे की 
और उसपर बरसात कहीं से आ जाओ 
दिल की बस्ती पर है खौफ अंधेरों का 
हो जाये न रात कहीं से आ जाओ 
कच्ची उमरें उस पर ख्वाब मोहब्बत के 
क्या क्या हैं ज़ज्बात कहीं से आ जाओ 
आँखे रास्ता देख रही हैं मुद्दत से 
गर्दिश में हैं हालात कहीं से आ जाओ 
मौसम मौसम लोग बदलते हैं "ख्वाहिश"
दिल पर हैं सदमात कहीं से आ जाओ.… 

आरज़ू थी तेरी बाँहों में दम निकले....









आरज़ू थी तेरी बाँहों में दम निकले,
कसूर तेरा नही बदनसीब हम निकले. 
जहाँ भी जाये खुश रहे तू सदा, 
दिल से मेरे दुआ सदा यही निकले. 
मेरे होठों की हंसी तेरे होंठो से निकले, 
तेरे ग़म का दरिया मेरे आँखों से निकले. 
ये जिंदगी तुम्हारी सदा हंसती हुई निकले, 
अगर चाहे तो हमे रुलाती हुई निकले. 
अगर जिंदगी में कभी जीना पड़े तेरे बिन, 
तेरी डोली से पहले अर्थी मेरी निकले. 
आरज़ू थी तेरी बाँहों में दम निकले, 
कसूर तेरा नही बदनसीब हम निकले.

ये तूने क्या किया है !











है हसरतों की ये ख्वाइश, या खुदा की है नुमाइश 
जो आजकल गुलज़ार वीरान हुआ है 
जो होता है वो अच्छे के लिए होता है अगर 
तो क्यूँ मैं मानना ना चाहूँ, कि जो हुआ है वो भला हुआ है !

कभी सोचता हूँ, और चौंक जाता हूँ ,
की ये जो हुआ, वो आखिर क्या हुआ है ?
बदलनी ही थी किस्मत को राह अगर,
तो वो क्यों चुनी जिसमे तू शामिल ना हुआ है ?

रात दिन, दिन रात, एक ही सवाल खाए है मुझे,
कि किस खता से तू रुसवा हुआ है ?
तुझे बचाने की जरुरत मेरी इतनी बदगुमान थी अगर,
तो क्यूँ इस रंजिश में मेरा ही दिल क़ुर्बान हुआ है ?

क्या करूँ, कैसे कहूँ, कि तेरी नादानी का ये कैसा वाक़िआ है,
कि जब खुलेंगे आँखें तेरी, तो तुझे लगेगा आइना भी दुश्वार हुआ है,
और मिला सके उस वक़्त तू खुद के नजर अगर,
तो याद करके इस पल को सोचना, कि तूने ये क्या किया है !

मगर जब याद आएंगी.....


कभी जो हम नहीं होंगे
कहो किस को बताओगे
वो अपनी उल्झने सारी
वो बेचैनि में डूबे पल्
वो आँखों में छुपे आन्शु
किसे फिर तुम दिखाओगे
बहुत बेचैन् होन्गे तुम
बहुत तनहा रह जाओगे
अभी भी तुम नहीं समझे
हमारी अनकही बातें
बहुत तुमको रुलाएन्गी
बहुत चाहोगे फिर भी तुम
हमे ना ढुन्ढ् पाओगे
कभी जो हम नहीं होंगे
कहो किस को बताओ