आंसू हो कर भी हँसाने की ये कैसी मज़बूरी है
अपने मुख को धक् लेने की ये कैसी मज़बूरी है
कल तक ये अंशुमन था मेरा की जीवन मुश्किल है पर
मर कर भी जीते रहने की या कैसी मज़बूरी है
महफ़िल में भी एक तन्हाई, ये कैसी मज़बूरी है
हर एहसास में रुसवाई, ये कैसी मज़बूरी है
भोर हुए मैंने खुद से जुझू, और संध्या को ये सोचूं
दिल में तू है अब भी समाई, ये कैसी मज़बूरी है
शमा तले एक घना अँधेरा, ये कैसी मज़बूरी है
खोजे मन एक नया सवेरा, ये कैसी मज़बूरी है
कैसा है ये दाव लगाया दिल ने अब इस बाज़ी में
मात भी मेरी, हार भी मेरी, ये कैसी मज़बूरी है
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