क्या कोई मंजिल मेरा मुक़द्दर है या यही मेरी अधूरी कहानी है | SketchyHeart














एक मोहब्बत है और उसकी एक निशानी है 
एक दिल है जैसे कोई हवेली पुरानी है 

सफ़र रात का है और रात भी तूफानी है 

समन्दर ही समन्दर है कश्ती भी डूब जानी है 

इब्तेदा-ए-इश्क से इन्तहा-ए-इश्क तक 

मैं ही था बेवफा और मैंने ही वफ़ा निभानी है 

मैं लौट आया हूँ मंजिल को देखकर 

यहाँ तो यादों की वीरानी ही वीरानी है 

ये इंतजार ख़त्म क्यों नही होता किससे पूछूँ

 क्या कोई मंजिल मेरा मुक़द्दर है या यही मेरी अधूरी कहानी है  

हर तरफ आप किस्सा आप जहाँ से सुनिए


चाँद से फूल से या मेरी जुबान से सुनिए
हर तरफ आप किस्सा जहां से सुनिए

सबको आता है दुनिया को सता कर जीना
ज़िन्दगी क्या मुहब्बत के दुआ से सुनिए

मेरी आवाज़ पर्दा मेरे चेहरे का
मैं हूँ खामोश जहाँ मुझको वहाँ से सुनिए

क्या जरुरी है कि हर पर्दा उठाया जाये
मेरे हालात अपने मुकाम से सुनिए
                                                                                                                                               - Nida Fazil

चाँद सितारों से क्या पुछु कब दिन मेरे फिरते हैं | Chand Sitaron Se Kya Puchhu Kab Din Mere Firte Hain













चाँद सितारों से क्या पूछूँ कब दिन मेरे फिरते हैं
वो तो बेचारे खुद हैं भिखारी दर-दर फिरते हैं

जिन गलियों में हमने सुख के सेज पे रातें काटी थी
उन गलियों में व्याकुल होकर साँझ सवेरे फिरते हैं

रूप-स्वरुप के जोत जगाना इन नगरी में जोखिम है
चारो खुंट बगुले बनकर घोर अँधेरे फिरते हैं

जिन के शाम-बदन साये में मेरा मन सुस्ताया था
अब तक आँखों के आगे वो बाल घनेरे फिरते हैं

कोई हमे भी ये समझा दो उन पर दिल क्यों रीझ गया
तीखी चितवन बनके चाब वाले बहुतेरे फिरते हैं

इस नगरी में बाग और वन की लीला न्यारी है
पंछी अपने सर पे उठाकर अपने बसेरे फिरते हैं

लोग तो दामन सी लेते हैं जैसे हो जी लेते हैं
"आबिद" हम दीवाने हैं जो बाल बिखेरे फिरते हैं
                                   - आबिद अली आबिद

कैसे अब उसके बिना वक़्त गुज़ारा जाये ! | Kaise Ab Uske Bina Waqt Guzara Jaye




शाम के सांवले चेहरे को निखारा जाये 
क्यों न सागर से कोई चाँद उभारा जाये 
रास आया नही तस्कीन का साहिल कोई 
फिर मुझे प्यास के दरिया में उतारा जाये 
मेहरबां तेरी नजर, तेरी आदाएं क़ातिल 
तुझको किस नाम से ऐ दोस्त पुकारा जाये 
मुझको डर है तेरे वादे पर भरोसा करके 
मुफ्त में ये दिल-ए-खुशफ़हम ना मारा जाये 
जिसके दम से तेरे दिन-रात दरख्शां थे "कातिल"
कैसे अब उसके बिना वक़्त गुज़ारा जाये 
                                                            कातिल शिफ़ाई