सफ़र रात का है और रात भी तूफानी है
समन्दर ही समन्दर है कश्ती भी डूब जानी है
इब्तेदा-ए-इश्क से इन्तहा-ए-इश्क तक
मैं ही था बेवफा और मैंने ही वफ़ा निभानी है
मैं लौट आया हूँ मंजिल को देखकर
यहाँ तो यादों की वीरानी ही वीरानी है
ये इंतजार ख़त्म क्यों नही होता किससे पूछूँ
क्या कोई मंजिल मेरा मुक़द्दर है या यही मेरी अधूरी कहानी है