मेरे अरमानों में आज भी कमजोर सी जान है
ना जाने किन हाथों में दिल की लगाम है
शायद है ज़िन्दगी किसी नए मोड़ पर
या शायद मुझसे मेरा रूह अनजान है
इश्क का यहाँ कुछ यूँ बदनाम है
कभी रांझा, तो कभी मजनू नीलाम है
हो गये बहुत सस्ते आँखों के जाम हैं
इसलिए प्यार में आज सब बेईमान हैं
करवटों में मेरी नींद बेताब है
उलझते सुलझते सपनों के सैलाब है
फलक तक का सफ़र है, गुमराह सड़क है
और शायद साथ अकेलेपन का खिताब है
अजीब अक्सर ये इश्क का नकाब है
कोई बर्बाद तो कोई इससे आबाद है
कोई बिछड़ के दुखी है, किसीकी मिलने की फ़रियाद है
अब खुदा क्या करे ? इश्क थोड़ी उसकी औलाद है !
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