दिलों में समा नही सकती...













लबों पे रूकती, दिलों में समां नही सकती 
वो एक बात जो लफ़्ज़ों में आ नही सकती 
जो दिल में हो नज़र-ए-ग़म तो अश्क पानी है 
के आग खाक को कुंदन बना नही सकती 
यकीन, गुमान से बाहर तो हो नही सकता 
नज़र ख्याल से आगे तो जा नही सकती 
दिलों की रम्ज़ फ़क़त एहल-ए-दिल जानते हैं 
तेरी समझ में मेरी बात आ नही सकती 
ये सौज-ए-इश्क तो गूंगे का ख्वाब है जैसे 
मेरी जुबां मेरी हालात बता नही सकती 
सिमट रही है मेरे बाजुओं के हलके में 
ह्या के बोझ से पलकें उठा नही सकती 
जो कह रहा है सुलगता हुआ बदन उस का 
बता भी पाती नही, और छुपा नही सकती 
एक ऐसे हिजर की आतिश है मेरे दिल में जैसे 
किसी विशाल की बारिश बुझा नही सकती 
तो जो भी होना है अमजद यहीं पे होना है 
ज़मीं मदार से बाहर तो जा नही सकती 
                                           :- अमज़द इस्लाम अमजद