धीरे-धीरे



बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे 
खुले मेरे ख्वाबों के पर धीरे-धीरे 

किसी को गिराया न खुद को उछाला 
काटा जिंदगी के सफ़र धीरे-धीरे 

जहाँ आप पहुचेंगे छलांगे लगा कर 
वहां मै भी पहुंचा मगर धीरे-धीरे 

पहाड़ों की कोई चुनौती नही थी 
उठाता गया कोई सर धीरे-धीरे 

गिरा मैं कही तो अकेले में रोया 
गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे
            
                  रामदरश मिश्र जी की कलम से ।

2 comments:

  1. कृपया इस गजल के लेखक रामदरश मिश्र का नाम दीजिये .क्योंकि ये कॉपीराइट क़ानून का हनन है I
    डॉ स्मिता मिश्र (पुत्री रामदरश मिश्र )

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  2. मुझे इसकी जानकारी नही थी । धन्यवाद ।

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