बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे
खुले मेरे ख्वाबों के पर धीरे-धीरे
किसी को गिराया न खुद को उछाला
काटा जिंदगी के सफ़र धीरे-धीरे
जहाँ आप पहुचेंगे छलांगे लगा कर
वहां मै भी पहुंचा मगर धीरे-धीरे
पहाड़ों की कोई चुनौती नही थी
उठाता गया कोई सर धीरे-धीरे
गिरा मैं कही तो अकेले में रोया
गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे
रामदरश मिश्र जी की कलम से ।
रामदरश मिश्र जी की कलम से ।
कृपया इस गजल के लेखक रामदरश मिश्र का नाम दीजिये .क्योंकि ये कॉपीराइट क़ानून का हनन है I
ReplyDeleteडॉ स्मिता मिश्र (पुत्री रामदरश मिश्र )
मुझे इसकी जानकारी नही थी । धन्यवाद ।
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