मेरी रूह जैसे कुचल गया
कोई शख्स ऐसे बदल गया
ये किसका हर्फ़-ए-दुआ रहा
के मैं गिरते-गिरते संभल गया
तेरी याद जब आने लगी
मेरा दर्द जैसे बहल गया
मेरी किस्मतों का काफ़िला
किसी और जानिब निकल गया
तुम्हे देखते हैं बेहिसाब
कोई ख्वाब मेरा मचल गया
मेरा पत्थरों सा गुरुर था
मगर तेरे आगे पिघल गया
कोई शख्स ऐसे बदल गया
ये किसका हर्फ़-ए-दुआ रहा
के मैं गिरते-गिरते संभल गया
तेरी याद जब आने लगी
मेरा दर्द जैसे बहल गया
मेरी किस्मतों का काफ़िला
किसी और जानिब निकल गया
तुम्हे देखते हैं बेहिसाब
कोई ख्वाब मेरा मचल गया
मेरा पत्थरों सा गुरुर था
मगर तेरे आगे पिघल गया
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