जीवन क्या है चलता फिरता एक खिलौना है
दो आँखों में एक से हँसना एक से रोना है
जो जी चाहे वो मिल जाये कब ऐसा होता है
हर जीवन, जीवन जीने का समझौता है
अब तक जो होता आया है वो ही होना है
रात अँधेरी भोर सुहानी यही ज़माना है
हर चादर में दुःख का ताना सुख का बाना है
आती सांस को पाना जाती सांस को खोना है
Poet of the Poem / Ghazal or Nazam :Nida Fazli
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