हँसाती थी मुझको, फिर रुला भी देती थी...














हंसाती थी मुझ को, फिर रुला भी देती थी
कर के वो मुझसे अक्सर वादे, भुला भी देती थी
बेवफा थी बहुत मगर, अच्छी लगती थी दिल को 
कभी-कभी बातें मोहब्बत की, सुना भी देती थी
थाम लेती थी मेरा हाथ, खुद यूँ ही
कभी अपना हाथ मेरे हाथ से, छुड़ा भी लेती थी
कभी बेवक्त चली आती थी, मिलने को
कभी कीमती पल मोहब्बत के, गवां भी देती थी
अजब धुप-छाव सा, मिजाज़ था उसका 
मोहब्बत भी करती थी, और दिल दुखा भी देती थी

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