जीने वालों से पूछते हो जीने का सबब
मरने वाले से जरा पूछो जीना क्या है
बरसती रहती हैं उनपर बूंदों की लड़ियाँ सदा
कोई हमसे पूछे सावन का महीना क्या है
दमकते रेत पर चल कर पहुचे जो तलाब तक
हाथ लगाते ही पानी जैसे सूख सा गया
उन्हें क्या पता जिन्हें मिले हैं जाम सुराही से
कोई हमसे पूछे मेहनत का पसीना क्या है
महफिलों में अक्सर कहते हैं सब
दिल-ए-नाशाद ना बयां करो अपना
करें ना हमपर रहम मगर
कोई हमसे पूछे अश्कों को पीना क्या है ?
साँसे हैं तब तक एक मुलाक़ात कर लो
कुछ नही तो बस ये सवालात कर लो
चले जाएँगे जब तक कौन बतलाएँगे तुम्हे
दिल के जख्मों को आँखों से सीना क्या है ?
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