मुझको यकीन है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
इक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे रिश्ता तोड़ लिया
इक वो दिन जब पेड़ के साखें बोझ हमारा सहती थीं
इक ये दिन जब लाखों ग़म और अकाल पड़ा है आँशु का
इक वो दिन जब ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं
इक ये दिन सड़के रूठी - रूठी लगती हैं
इक वो दिन जब "आओ खेलें" सारी गलियाँ कहती थीं
इक ये दिन जब जगी रातें दीवारों को ताकती हैं
इक वो दिन जब शाखों के भी पलकें बोझल रहती थीं
इक ये दिन जब ज़हां में सारी अय्यारी के बातें हैं
इक वो दिन जब दिल में सारी भोली बातें रहती थीं
इक ये घर जिस घर में मेरा साज़-ओ-सामान रहता है
इक वो घर जिसमे मेरी बूढी नानी रहती थीं.