उसकी गलियों से जब लौटे, अपना ही घर भूल गये...
















याद नही क्या क्या देखा, सारे मंजर भूल गये,
उसकी गलियों से जब लौटे, अपना ही घर भूल गये,
खूब गये परदेश कि अपने दीवारों दर भूल गये,
शीश महल ने ऐसा घेरा मिट्टी के घर भूल गये,
उसकी गलियों से जब लौटे अपना ही घर भूल गये.
तुझको भी जब कसमें अपने वादें याद नही,
हम भी अपने ख्वाब तेरी आँखों में रख कर भूल गये,
उसकी गलियों से जब लौटे अपना ही घर भूल गये.
मुझको जिन्होंने कोई उन्हें बतलाये नजीर,
मेरी लाश की पहलु में वो अपना खंजर भूल गये,
उसकी गलियों से जब लौटे अपना ही घर भूल गये.
याद नही क्या क्या देखा था सारे मंजर भूल गये,
उसकी गलियों से जब लौटे अपना ही घर भूल गये.

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